Kabhi Kabhi Poetry by Nidhi Narwal I FNP Media
Kabhi Kabhi Poetry :- A Very gifted, sensational young poetess Nidhi Narwal come back again with a meaningful poetry which is titled Kabhi Kabhi. This poetry is about the stucking life phases. There are times in life that we do not understand anything and the brain stops working. Everybody turns against you and refuse to understand your things. In such a situation life becomes very difficult and we always start thinking negatively. This poetry has published under the label of Live By FNP Media.
Kabhi Kabhi Poetry
कभी कभी मैं परेशान हो जाती हूं
कलम से लड़ झगड़ कर सो जाती हूं
लिखने का दिल करता है दिल की बातें
पर दिल तक जाते जाते खो जाती हूं
कभी कभी समझ नहीं आता कि मैं कहां हूं
कभी कभी यकीन नहीं होता कि मैं यहां हूं
जब ख्वाबों से रक्त धुंधले हुए जाते हैं
तब लगता है कि मैं जो भी हूं बेवजह हूं
कभी कभी आँखों को फूल नहीं भाते
ज़िन्दगी के ताने बाने समझ नहीं आते
मुस्कुराना बहुत ही भारी काम लगता हैं
पर पलकों से आसूं भी फिसल नहीं पाते
कभी कभी गुस्सा आता है मेरे अयाल पर
सबसे कहती हूं मुझे छोड़ दो मेरे हाल पर
ज़िन्दगी के कदम बढ़ते तो हैं मेरी तरफ
मगर फिर वो तमाचे सी पड़ती है गाल पर
कभी कभी मेरे हालात बहुत उलझ जाते हैं
जिम्मेदारी की आग में अरमान झुलस जाते हैं
मैं इस तरह दूर करने लग जाती हूं खुद को खुद से
कि मुझसे कागज कलम मिलने को तरस जाते है
कभी कभी लगता है कि मैं कुछ कर नहीं सकती
मानो सांसें भी खुद से मैं भर नहीं सकती
पुकार लगाती रहती हूं केवल अपने अंत को
पर वो सामने भी हो खड़ा तो मैं मर नहीं सकती
कभी कभी उम्मीद कंधो पर बोझ लगती है जैसे वो लाश हो
कभी कभी अपनों की हंसी नमकीन लगती है मेरे घाव पर
आंखों को सिवाय मेरी तबाही के और कुछ नहीं दिखता
मेरी तबाही वाकई बड़ी हसीन लगती है
कभी कभी लगता है कि मैं इस जहान से जंग में हूं
और हथियार डाल चुकी हूं इतनी तंग मैं हूं
इतने रंग उड़ेले हैं लोगों ने मुझ पर आज तलक
कि अब लगता है इस दुनिया में सबसे बेरंग मैं हूं
सबसे बेरंग मैं हूं....!
Written By:
Nidhi Narwal
Kabhi Kabhi Poetry
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